लेखक - नरसिंह पूर्व प्रधानाचार्य
भोजपुरी भाषा भारतवर्ष की एक तिहाई जनसंख्या द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। लगभग 25 करोड़ जन समुदाय की समृद्ध भाषा सरकार की उपेक्षा का शिकार हो गई है। जबकि नेपाल मारिशस जैसे 14 देश में भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है.
भारत के पढ़े-लिखे लोगों का एक समूह भोजपुरी भाषा को बोली कहने से नहीं थकता। भोजपुरी भाषा के प्रति यह भावना, अवधारणा, पूर्णतया भ्रांतिमय तथा अव्यावहारिक है। यह भोजपुरी भाषा के प्रति अन्याय पूर्ण रवैया है, इस प्रकार का विचार भारत की अन्य भाषाओं के साथ भी है। यह बात तथ्य संगत है कि प्राकृत भाषा से जिन छः भाषा समूहों की उत्पत्ति हुई इसी से भारत की अधिकांश भाषाओं की उत्पत्ति हुई है। इन्हीं भाषा समूहों का एक भाषा समूह है मागधी प्राकृत। मागधी प्राकृत का एक नाम पाली भी है। मागधी प्राकृत की दो बेटियां हैं पूर्व अर्ध मागधी प्राकृत और पश्चिमी अर्दध मागधी प्राकृत। पश्चिमी अर्धमागधी प्राकृत की चार बेटियां हैं, मगही, भोजपुरी ,नागपुरिया और छत्तीसगढ़ी। इस प्रकार पाली भोजपुरी की दादी है।
भोजपुरी स्वतंत्र और पूर्ण भाषा है। जिसकी चार उप भाषाएं हैं, डुमरावी, चंपारणी, काशिका और बस्तियां. भोजपुरी भाषा विश्व की ताकतवर भाषा है ।हम लोग विशेष कर भोजपुरिया जिन की मातृभाषा है, संस्कृति और पहचान है। वही लोग इसकी ताकत को नहीं पहचान पा रहे हैं। संपूर्ण भोजपुरी क्षेत्र की माटी आध्यात्मिक ऊर्जा से ओत प्रोत, अपार उर्वरा शक्ति, समृद्ध संस्कृति, वीर सपूतों, साहित्यकारों, चिंतकों विचार को जन्म देने वाली पवित्र माटी है। हम लोगों को अपनी माटी और मातृभाषा को समृद्ध बनाने में थोड़ा सा भी उदास नहीं होना चाहिए। यह तो भोजपुरी के लिए गर्व की बात है। जो लोग अपनी माटी और मातृभाषा को सवाल कर रहे है।आदर किया है कभी अपमानित नहीं हुए हैं इतिहास इसका साक्षी है।
भोजपुरी भाषा और क्षेत्र की उपेक्षा राजनीतिक षड्यंत्र का एक हिस्सा है, मातृभाषा और क्षेत्र की विपनंता का हिसाब अपने सांसदों और विधायकों से मांगने का समय आ गया है,। किसी के बहकावे में मत आइए। आजादी के 75 वर्ष के बाद भी भोजपुरी भाषा को संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं हो पाया है आखिर क्यों अपने प्रतिनिधियों से पूछिए।
भोजपुरी भाषा को संवैधानिक दर्जा मिलने पर पढ़ने लिखने और रोजगार प्राप्त करने का दरवाजा खुल जाएगा और रास्ता साफ हो जाएगा, साथ ही साथ भोजपुरी क्षेत्र में रहने वाले लोगों के पुरुषों का सपना भी पूरा होगा, सम्मान भी बढ़ेगा। आज सही समय है अपना सम्मान प्राप्त करने का, एकजुट होइए और संघर्ष के लिए आगे आईए, कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
भारतीय भाषाओं को संवैधानिक दर्जा देने के लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में जो प्रावधान किए गए हैं उसमें अनुच्छेद 344 और 351 है, इसके प्रावधानों का गहन अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट होता है कि हिंदी को स्थापित करना इसकी मूल आत्मा है, किसी भी भारतीय भाषा को संवैधानिक दर्जा देते समय यह ध्यान रखा जाएगा की उसके विकास से हिंदी की प्रगतिशीलता बाधित तो नहीं हो रही है।
आज संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल की गई हैं 38 भाषाओं को शामिल करने के लिए मांग चल रही है जिसमें अन्य भाषाओं के साथ-साथ भोजपुरी भी है। 2004 में डूंगरी बोडो मैथिली और संथाली को संवैधानिक दर्जा दिया गया, भोजपुरी र देखती रह गई, जबकि भोजपुरी उन सभी शर्तों को पूरा करती है जो संवैधानिक दर्जा के लिए होना चाहिए। सिर्फ भोजपुरी को हिंदी के लिए खतरा का भ्रम जाल फैलाकर इस वह हसिया पर रखने का षड्यंत्र किया जा रहा है।संविधान की आठवीं अनुसूची में उन 38 भाषाओं को शामिल करने से राष्ट्रीय एकता और हिंदी भाषा को कौन सा खतरा है, इस प्रकार का भ्रम पैदा करना इस बात का गवाह है कि गुलाम मानसिकता के लोग अभी भी भारत भूमि पर हैं और मौका मिलते ही इसका लाभ उठा लेते हैं। ऐसे गुलाम मानसिकता और साम्राज्यवादी विचारधारा के लोगों से खतरा हो सकता है, किसी भाषा से किसी भाषा को क्या खतरा हो सकता है। यह सोचने और समझने की बात है। इस पर संज्ञान लेने की जरूरत है। भाषण अपनी आंतरिक सामर्थ और स्वभाव से आगे बढ़ती है, प्रयोग और व्यवहार से फलती फूलती है इस प्रकार के नकारात्मक सोच विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के ताकत को कमजोर करते हैं
भारत जैसे देश की खूबसूरती इसकी भाषाई, सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता तो है, कोई भाषा मरेगी तो भारत के खूबसूरत बगीचा का सौंदर्य प्रभावित होगा।
भारत जैसे देश में भाषा नीति निर्धारित करते समय दूर दृष्टि, सहनशीलता, व्यवहारिक दृष्टिकोण, विश्व प्रेम, उचित आदर्श,पारस्परिक सद्भावना का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इन बातों को ध्यान में रखकर नीति निर्धारण करने पर भाषा ही नहीं सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
मातृभाषाओं के अवमानना से नैतिकप साहस, कर्म उत्साह और संघर्ष करने की शक्ति के साथ-साथ मानव का विकास अवरूद्ध हो जाता है,क्योंकि मातृभाषा के अलावा अन्य भाषा में बातचीत करने में कठिनाई होती है और व्यक्ति असहज होने लगता है धीरे-धीरे उसकी प्राण शक्ति कमजोर होने लगती है उसे जनसमूह में एक मनोवैज्ञानिक संकट उत्पन्न हो जाता है।सब में हैं भाव हो जाता है।
अपनी मातृभाषा को समृद्ध पवित्र और शास्त्री बनाना उन लोगों का नैतिक धर्म है सामाजिक उत्तरदायित्व है।इस बात को गहराई से समझना चाहिए। मातृभाषा और संस्कृतियों की उपेक्षा से हजारों भाषाएँ और संस्कृतियाँ मरने के कगार पर खड़ी है। आप सभी भोजपुरिया भाई-बहन मनन चिंतन करें अपनी मातृभाषा के लिए आगे आए। आप जैसे पढ़े-लिखे लोगों से वे अनपढ़ बहुत ही अच्छे हैं जो अपनी मातृभाषा को जिंदा रखे हैं। उनका तहे दिल से स्वागत होना चाहिए उनसे प्रेरणा भी लेना चाहिए।
देखा जा रहा है कि भोजपुरी भाषा अपने लोगों की उपेक्षा का शिकार हो गई है। भोजपुरी क्षेत्र के विद्वान साहित्यकार लोग हिंदी को संवारने की होड़ में अपनी मातृभाषा भोजपुरी को निर्दयता पूर्वक रोने के लिए छोड़ दिए। भोजपुरी भाषा अपने ताकत के बलबूते पर आज भी समृद्ध और ताकतवर भाषा के रूप में खड़ी है। दुनिया को अपनी मिठास से आनंदित कर रही है
आजकल भोजपुरी भाषा के विरासत को मिटाने का षड्यंत्र चल रहा है बाद में आप लोगों को भी उल्लू बना देंगे, आप कहीं के नहीं रहेंगे। दुनिया की सभी भाषा जानिए पर अपनी मातृभाषा को सबसे ऊपर रखिए, जहां भी आप कमजोर हुए लोगप उसका फायदा उठा लेंगे सिर्फ हाथ मलते रह जाना पड़ेगा, आज देखा जाए तो सिनेमा जगत के लोग, साहित्यकार, संगीतकार, अश्लील का पुरस्कार पैसा कमाने में लगे हैं,ऐसे नापाक मंसूबे वाले लोगों का सबसे अधिक शिकार भोजपुरी भाषा हुई है, इससे हमारी मातृभाषा कमजोर हो रही है या सिलसिला किसी भी कीमत पर रुकना चाहिए, इसके लिए लाठी और कलम दोनों की जरूरत है।
अभी तो भोजपुरी जैसी ताकतवर भाषा को गवार की भाषा कहा जा रहा, फुहरपन का जामा पहनाकर इसके अस्मिता को लूटा जा रहा है, कल कहा जाएगा कि भोजपुरी हिंदी की उप भाषा है। भोजपुरी के विकास से हिंदी को खतरा है।इस प्रकार के गुलाम मानसिकता के लोगों को मुंहतोड़ जवाब देना पड़ेगा। आप सब लोग जागरुक होइए तभी अपनी मातृभाषा और संस्कृति की रक्षा कर सकेंगे, अपने सामर्थ को पहचानिए इसके बाद देखिए आपके सामने कोई नहीं टिकेगा और न इस प्रकार का दुस्साहस करने का प्रयास करेगा। आजादी के 75 वर्ष के बाद भी भोजपुरी भाषा के संवैधानिक दर्जा का सवाल भोजपुरी के सीने में छुप रहा है, हिंदी भाषा के लगभग 60% साहित्यकार भोजपुरी माटी के लाल है, फिर भी दुर्भाग्य है कि यह लोग अपनी मातृभाषा को कभी याद नहीं किया बल्कि भोजपुरी भाषा में लिखने वाले लोगों का मजाक उड़ाया।
भारत की आजादी की लड़ाई में सबसे अधिक योगदान भोजपुरिया लोगों का था, भारत को समृद्ध बनाने में इनका योगदान कम नहीं है। भोजपुरी भाषा का नाम भारतवर्ष के प्रतापी राजा के नाम पर पड़ा है,, यह थे राजा भोज, भोजपुरी भाषा का इतिहास लगभग 1400 वर्ष पुराना है, आज भोजपुरी भाषा अंतर्राष्ट्रीय भाषा बन गई है, यह भारत की एकमात्र भाषा है जो भारत के बाहर बोली जाती है। यह बात हम गर्व से कह सकते हैं कि भोजपुरी भाषा का सूर्य कभी डूबता नहीं है।
भोजपुरी भाषा सिर्फ भाषा ही नहीं यह संस्कृति ,अस्मिता और पहचान भी है। भाषा विज्ञान के अनुसार भोजपुरी भाषा में भी सभी गुण मौजूद हैं जो एक समृद्ध भाषा में होना चाहिए। भारतीय संविधान निर्माता को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए था कि भारत विविध भाषा और बहु सांस्कृतिक संपन्न देश है। इसकी उपेक्षा दिखाई देती है। संविधान में भोजपुरी भाषा के प्रति संवेदनहीनता संविधान निर्माता की देन है, जबकि संविधान निर्माता की टीम में अहम भूमिका भोजपुरी क्षेत्र और भोजपुरी भाषी लोगों की रही है। संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सिवान बिहार के ही थे, किसका किसका नाम गीनाऊ अच्छा नहीं लगता है।
बीती बात बिसारीए आगे की सुध लेहु। अब मातृभाषा भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा के लिए सबको एक साथ आपसी मतभेद भुलाकर हूंकार भरने का समय आ गया है। सैकड़ो संगठन भोजपुरी भाषा को समृद्ध बनाने, संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं पर जमीनी हकीकत कुछ और है। जब तक हम लोग नियत साफ करके अपनी आवाज को नहीं उठाएंगे, मातृभाषा भोजपुरी को अपने सम्मान से जोड़कर नहीं चलेंगे कुछ होने वाला नहीं है।
जिस दिन आपकी कलम सही दिशा में चलेगी और लाठी लेकर सड़क पर उतर जाएंगे, भोजपुरी भाषा को संवैधानिक दर्जा मिलना ही है।
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